BA Semester-5 Paper-1 Sociology - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 समाजशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2797
आईएसबीएन :0

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समाजशास्त्रीय चिन्तन के अग्रदूत (प्राचीन समाजशास्त्रीय चिन्तन)

प्रश्न- पैरेटो की तार्किक एवं अतार्किक क्रियाओं की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -

तर्कसंगत और अतर्कसंगत क्रियाओं की अवधारणा - पैरेटो ने समाजशास्त्र को वैज्ञानिक आधार प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। पैरेटो की पद्धति को तार्किक प्रयोगात्मक पद्धति के नाम से जाना जाता है। पैरेटो का पद्धतिशास्त्र विशुद्ध वैज्ञानिक एवं यथार्थ है। पैरेटो को यह ख्याति उनके द्वारा प्रतिपादित अनेक सिद्धान्तों की वैज्ञानिकता के कारण प्राप्त हुई है। अपने अनेक सिद्धान्तों में पैरेटो का सामाजिक क्रियाओं का वर्गीकरण समाजशास्त्र में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसी सिद्धान्त के कारण पैरेटो पारसन्स, वेबर ओर मर्टन जैसे समाजशास्त्रियों के समकक्ष आ गए हैं। पैरेटो ने सामाजिक क्रियायों सम्बन्धी अपने विचार, अपनी महत्वपूर्ण पुस्तक "माइन्ड एण्ड सोसायटी" में प्रस्तुत किए हैं। पैरेटो ने सामाजिक घटनाओं के अध्ययन के आधार पर समस्त मानवीय क्रियाओं को दो भागों में बांटा है -

(ब) अतर्कसंगत क्रियाएँ।
(अ) तर्कसंगत क्रियाएँ

पैरेटो के विचार में इस प्रकार का वर्गीकरण अत्यन्त ही आवश्यक है। इन्होंने इन दोनों प्रकार की क्रियाओं को दो आधारों में बाँटा है। पैरेटो के मतानुसार तर्कसंगत क्रियाओं का आधार सामान्यतः वस्तुनिष्ठ होता है, जबकि अतर्कसंगत क्रियाओं का आधार व्यक्तिनिष्ठ होता है।

पैरेटो का कथन है कि प्रत्येक सामाजिक घटना के दो पहलू हो सकते हैं - (1) जैसी कि घटना वास्तव में है, (2) जैसीकि वह किसी व्यक्ति विशेष के मस्तिष्क में अंकित है। प्रथम को पैरेटो ने 'वस्तुनिष्ठ' तथा द्वितीय को 'व्यक्तिनिष्ठ' कहा है। पैरेटो का कथन है कि इस प्रकार का विभाजन बहुत ही आवश्यक है क्योंकि एक केमिस्ट को, जोकि अपनी प्रयोगशाला में प्रयोगात्मक क्रिया में व्यस्त है और एक उस व्यक्ति को दो जो जादू की क्रिया दिखा रहा है, एक ही श्रेणी के अन्तर्गत रखना या मान लेना कदापि उचित न होगा। प्रथम व्यक्ति की क्रिया का आधार वस्तुनिष्ठ है। इस कारण वह वैज्ञानिक है, जबकि दूसरा व्यक्ति केवल व्यक्तिनिष्ठ आधारों पर कार्य करता है। पैरेटों के अनुसार वस्तुनिष्ठ तथा व्यक्तिनिष्ठ आधारों पर भेद महत्वपूर्ण, उपयोगी तथा उचित है, फिर भी इन दोनों के बीच कोई दृढ़ विभाजक रेखा खींचना सम्भव नहीं है। पैरेटो ने वस्तुनिष्ठ तथा व्यक्तिनिष्ठ आधारों का और भी सरल रूप में स्पष्टीकरण इस प्रकार किया है कि प्रत्येक सामाजिक या व्यक्तिगत क्रिया के दो पक्ष होते हैं- (1) लक्ष्य, (2) साधन। हम किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिये कुछ साधनों का प्रयोग करते हैं, परन्तु ये साधन किस प्रकार के होंगे या उनकी क्या प्रकृति होगी यह उन कार्यों की प्रकृति पर निर्भर करता है जिन्हें कि हम लक्ष्य की प्राप्ति करने के लिए काम में लाते हैं। यथार्थ तथा तर्कयुक्त कार्यों को वस्तुनिष्ठ कहते हैं। इसके विपरीत, ऐसे भी कार्य होते हैं जिनमें लक्ष्य और साधन के बीच तार्किक संगति का अभाव होता है, अर्थात् ऐसे कार्य जो कि यथार्थ, अनुभवसिद्ध तथा तर्कसंगत नहीं होते हैं, उनको व्यक्तिनिष्ठ कहते हैं। अतः स्पष्ट है कि पैरेटो के मतानुसार वे कार्य, जिनका आधार वस्तुनिष्ठ है, तर्कसंगत क्रियाएँ हैं और वे कार्य, जिनका कि आधार व्यक्तिनिष्ठ है, अतर्कसंगत क्रियाएँ हैं।

इस प्रकार "पैरेटो के लिये क्रिया की प्रमुख विशेषता तर्क के साथ उनका सम्बन्ध था। इस कथन का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक क्रिया का एक तार्किक आधार होता है। यह जरूरी नहीं है कि यह तार्किक आधार सर्वमान्य या सबके द्वारा स्वीकृत या प्रयोग सिद्ध ही हो। कि क्रिया को करने वाले कर्ता के अपने दृष्टिकोण से उस क्रिया का कोई तार्किक आधार हो और उसी तार्किक आधार पर वह अपनी क्रिया का औचित्य दर्शाने या प्रमाणित करने का प्रयत्न करे। पैरेटो ने इसे ही 'भ्रान्त-तर्क की संज्ञा दी है। इसके विपरीत यह भी हो सकता है कि एक क्रिया का तार्किक आधार इस प्रकार का हो जोकि वास्तव में प्रयोगसिद्ध हो और स्पष्ट रूप में ऐसी अनेक क्रियाएँ होती हैं जिनके लक्ष्य तथा साधन के बीच जो सामंजस्य होता है उसे तर्क के आधार पर वास्तव में समझाया जा सकता है, परन्तु ऐसी भी क्रियाएँ होती हैं जिनके लक्ष्य तथा साधनों के बीच पाए जाने वाले तथाकथित सामंजस्य को उन क्रियाओं को करने वाला कर्ता अपने तर्क द्वारा समझा तो अवश्य ही देता है परन्तु वह तर्क वास्तव में भ्रान्त- तर्क ही होता है। इस प्रकार क्रिया का सम्बन्ध तर्क से होता अवश्य ही है, चाहे वह तर्क प्रामाणिक तर्क हो या भ्रान्त-तर्क। जब एक क्रिया प्रामाणिक तर्क से सम्बन्धित होती है तो उसे तर्क संगत क्रिया कहते हैं, और जब क्रिया केवल एक ऐसे तर्क से सम्बन्धित है जोकि केवल कर्ता के दृष्टिकोण से उचित है तो उसे अतर्कसंगत क्रिया कहेंगे। इसीलिए पैरेटो के मतानुसार क्रिया की किसी भी विवेचना व विश्लेषण में हमें उसके अन्तर्निहित तर्क के सम्बन्ध में भी सचेत रहना चाहिए और यह देखना चाहिए कि किस प्रकार के तर्क से वह क्रिया सम्बन्धित है क्योंकि इसी के आधार पर क्रिया की वास्तविक प्रकृति अर्थात् वह व्यक्तिनिष्ठ है या वस्तुनिष्ठ है, यह जानना हमारे लिये सरल व सम्भव होगा। वैसे तो प्रत्येक कर्ता के द्वारा निरन्तर यही प्रयत्न होता रहता है कि वह अपने कार्य या क्रिया को इस भाँति सम्पन्न करे कि वह अधिक से अधिक मात्रा में वस्तुनिष्ठ ही प्रतीत हो, चाहे वास्तव मे वह वैसा भले ही न हो। क्रिया की प्रक्रिया में तर्क का सर्वप्रमुख कार्य एक क्रिया-विशेष के औचित्य को प्रमाणित करना होता है। इस प्रमाण का आधार सदैव वस्तुनिष्ठ ही होगा, इसकी कोई निश्चितता नहीं होती। व्यक्तिनिष्ठ आधारों पर भी क्रिया का औचित्य प्रमाणित किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में व्यक्ति जितने भी प्रकार की क्रियाओं को करता है, उन सब क्रियाओं का औचित्य सदैव वस्तुनिष्ठ आधार पर ही दर्शाना सम्भव नहीं होता, बहुधा अपनी क्रियाओं के औचित्य के सम्बन्ध में अपने को तथा दूसरों को समझाने के लिए अपनी समझ के अनुसार व्यक्ति अपने तर्क प्रस्तुत करता है। दोनों ही रूप में क्रिया का सम्बन्ध तर्क से हो जाता है। इस प्रकार पैरेटों के अनुसार मानवीय क्रियाएँ तर्क संगत हो सकती हैं और अतर्कसंगत भी। तर्कसंगत क्रिया ही वास्तव में प्रामाणिक होती है क्योंकि इस प्रकार की क्रियाएँ निरीक्षण और अनुभव के क्षेत्र के अन्तर्गत होती हैं। इनका आधार तो वास्तविक तथ्य होता है और इस कारण इनकी परीक्षा वास्तविक अनुभव, निरीक्षण या प्रयोग द्वारा ही हो सकती है। इसीलिए तर्कसंगत क्रियाएँ विज्ञान के क्षेत्र के अन्तर्गत आती हैं, जबकि अतर्कसंगत क्रियाएँ काल्पनिक होने तथा निरीक्षण और अनुभवसिद्ध न होने के कारण विज्ञान के क्षेत्र के अन्तर्गत नहीं आती है, यद्यपि इनका अध्ययन विज्ञान द्वारा होता है। पैरेटो के तर्कसंगत एवं अतर्कसंगत क्रियाओं के वर्गीकरण कर विश्लेषण करने पर कुछ बाते सामने आती है -

(i) अतर्कसंगत क्रियाएँ वे मानवीय क्रियायें हैं जिनमें साधन और साध्य मं् तार्किक संगति का अभाव होता है।

(ii) अतर्कसंगत क्रियायें वे मानवीय क्रियायें हैं जो साधन और साध्य में समायोजन स्थापित करती हैं।

(iii) तर्कसंगत क्रियाओं का आधार सामान्यतः वस्तुनिष्ठ होता है। वस्तुनिष्ठता का तात्पर्य घटना को उसके वास्तविक रूप में देखने से है।

(iv) अतर्कसंगत क्रियाओं का आधार व्यक्तिनिष्ठ होता है। इस स्थिति में मनुष्य किसी भी घटना का मूल्यांकन अपने दृष्टिकोण से करता है। यह दृष्टिकोण वास्तविक भी हो सकता है और अवास्तविक भी।

(v) तर्कसंगत क्रियाओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिये, अतर्कसंगत क्रियाओं का अध्ययन किया जाना नितान्त आवश्यक है।

(vi) अतर्कसंगत क्रिया का निर्माण कुछ बातों के द्वारा होता है। पैरेटो ने इस सन्दर्भ में दो तत्वों का उल्लेख किया है-

(अ) विशिष्ट चालक अथवा अवशेष
(ब) भ्रान्त तर्क अथवा प्रत्युत्पाद

उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि पैरेटो के अनुसार केवल वे क्रियाएँ तर्कसंगत है, जोकि तर्कपूर्ण रीति से साधन को लक्ष्य के साथ जोड़ती हैं, केवल उस कर्ता की दृष्टि से नहीं जो उस क्रिया को करता है, बल्कि उन अन्य व्यक्तियों की दृष्टि से भी जो उसके विषय में अधिक व्यापक ज्ञान रखते हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में सोलहवीं शताब्दी से उन्नीसवीं शताब्दी तक के वैज्ञानिक चिन्तन के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  4. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति क्या है? इसके प्रमुख प्रभाव बताइए।
  5. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के प्रमुख प्रभाव बताइए।
  6. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के सामाजिक प्रभाव बताइये।
  7. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के आर्थिक प्रभाव बताइए।
  8. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज व अर्थव्यवस्था पर क्या अच्छे प्रभाव हुए।
  9. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज व अर्थव्यवस्था पर क्या बुरे प्रभाव हुए।
  10. प्रश्न- राजनीतिक व्यवस्था से क्या आशय है? भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के निर्धारक तत्वों को बताइए।
  11. प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के निर्धारक तत्वों को बताइए।
  12. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्तियों ने कैसे समाजशास्त्र की आधारशिला एक स्वतन्त्र अध्ययन के रूप में रखी? विवेचना कीजिए।
  13. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के क्या सामाजिक एवं राजनीतिक परिणाम हुये?
  14. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के उद्भव एवं विकास को संक्षेप में समझाइये।
  15. प्रश्न- ज्ञानोदय से आप क्या समझते हैं। वैज्ञानिक पद्धति की प्रकृति और सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में वैज्ञाकि पद्धति के प्रयोग का वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- "समाजशास्त्र एक नवीन विज्ञान है।" विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- फ्रांस की क्रान्ति से आप क्या समझते हैं?
  18. प्रश्न- समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिये।
  19. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र का महत्व बताइये।
  20. प्रश्न- कॉम्ट के प्रत्यक्षवाद की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- कॉम्टे द्वारा प्रतिपादित चिन्तन की तीन अवस्थाओं के नियम की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  22. प्रश्न- कॉम्टे की प्रमुख देन की परीक्षा कीजिये।
  23. प्रश्न- अगस्त कॉम्ट का जीवन परिचय दीजिए।
  24. प्रश्न- कॉम्ट के मानवता के धर्म का नैतिकता आधार क्या है?
  25. प्रश्न- संस्तरण के आधार अथवा सिद्धान्त बताइये।
  26. प्रश्न- समाजशास्त्र में प्रत्यक्षवादी पद्धतिशास्त्र की मुख्य विशेषतायें कौन-कौन सी हैं?
  27. प्रश्न- कॉम्ट के विज्ञानों का वर्गीकरण प्रत्यक्षवाद से किस प्रकार सम्बन्धित है?
  28. प्रश्न- कॉम्ट की प्रमुख देन की परीक्षा कीजिए।
  29. प्रश्न- प्रत्यक्षवाद क्या है?
  30. प्रश्न- कॉम्टे के प्रत्यक्षवाद को परिभाषित कीजिये।
  31. प्रश्न- तात्विक अवस्था क्या है?
  32. प्रश्न- सामाजिक डार्विनवाद से आपका क्या तात्पर्य है?
  33. प्रश्न- स्पेन्सर द्वारा प्रस्तुत 'सामाजिक उद्विकास' के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  34. प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर का जीवन परिचय दीजिए।
  35. प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर के 'सामाजिक नियन्त्रण के साधन' सम्बन्धी विचार बताइए।
  36. प्रश्न- स्पेन्सर द्वारा प्रतिपादित सावयवी सिद्धान्त की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- समाजशास्त्र के क्षेत्र में हरबर्ट स्पेन्सर के योगदान का उल्लेख कीजिए।
  38. प्रश्न- अधिसावयव उद्विकास की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक एकता के सिद्धान्त की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  40. प्रश्न- यान्त्रिक व सावयवी एकता से सम्बन्धित वैधानिक व्यवस्थाएं क्या हैं?
  41. प्रश्न- दुर्खीम के श्रम विभाजन सिद्धान्त की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
  42. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त को समझाइए।
  43. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में दुर्खीम का योगदान बताइए।
  44. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त की आलोचनात्मक जाँच कीजिए।
  45. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा वर्णित आत्महत्या के प्रकारों की विवेचना कीजिए।
  46. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'आत्महत्या सामाजिक कारकों की उपज है न कि वैयक्तिक कारकों की। दुर्खीम के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  48. प्रश्न- दुखींम का समाजशास्त्रीय योगदान बताइये।
  49. प्रश्न- दुखींम ने समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति को समृद्ध बनाया, व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- दुर्खीम की कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
  51. प्रश्न- इमाइल दुर्खीम के जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- कॉम्ट तथा दुखींम की देन की तुलना कीजिए।
  53. प्रश्न- श्रम विभाजन समझाइये।
  54. प्रश्न- दुर्खीम ने यान्त्रिक तथा सावयवी एकता में अन्तर किस प्रकार किया है?
  55. प्रश्न- श्रम विभाजन के कारण बताइए।
  56. प्रश्न- दुखींम के अनुसार श्रम विभाजन के कौन-कौन से परिणाम घटित हुए? स्पष्ट कीजिए।
  57. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विशेषताएँ लिखिए।
  58. प्रश्न- श्रम विभाजन, सावयवी एकता से किस प्रकार सम्बन्धित है?
  59. प्रश्न- यान्त्रिक संश्लिष्टता तथा सावयविक संश्लिष्टता के बीच अन्तर कीजिए।
  60. प्रश्न- दुर्खीम के सामूहिक प्रतिनिधान के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  61. प्रश्न- दुर्खीम का पद्धतिशास्त्र पूर्णतया समाजशास्त्री है। विवेचना कीजिए।
  62. प्रश्न- सामाजिक एकता क्या है?
  63. प्रश्न- आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  64. प्रश्न- अहम्वादी आत्महत्या के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचारों की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या के कारणों की विवेचना कीजिए।
  66. प्रश्न- सामाजिक एकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  67. प्रश्न- सामाजिक तथ्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा प्रतिपादित 'समाजशास्त्रीय पद्धति' के नियम क्या हैं?
  69. प्रश्न- दुखींम की सामाजिक चेतना की अवधारणा का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
  70. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
  71. प्रश्न- परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
  72. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- पैरेटो ने समाजशास्त्र को एक तार्किक प्रयोगात्मक विज्ञान नाम क्यों दिया? उनकी तार्किक प्रयोगात्मक पद्धति की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- "इतिहास कुलीन तन्त्र का कब्रिस्तान है।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
  77. प्रश्न- पैरेटो की तार्किक एवं अतार्किक क्रियाओं की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- विलफ्रेडो परेटो की प्रमुख कृतियों के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  79. प्रश्न- विशिष्ट चालक का महत्व बताइए।
  80. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क का वर्गीकरण कीजिए।
  81. प्रश्न- परेटो का समाजशास्त्र में योगदान संक्षेप में बताइए।
  82. प्रश्न- तार्किक और अतार्किक क्रिया की तुलना कीजिए।
  83. प्रश्न- पैरेटो के अनुसार शासकीय तथा अशासकीय अभिजात वर्ग की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
  84. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
  85. प्रश्न- मार्क्सवादी सामाजिक परिवर्तन की धारणा क्या है? समझाइए।
  86. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  88. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  89. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  90. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  91. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही हैं?
  92. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  93. प्रश्न- पूँजीवादी समाज में अलगाव की स्थिति तथा इसके कारकों की विवेचना कीजिए।
  94. प्रश्न- संक्षेप में अलगाव के स्वरूपों को समझाइये।
  95. प्रश्न- मार्क्स ने पूँजीवाद की प्रकृति के विनाश के किन कारणों का उल्लेख किया है?
  96. प्रश्न- पूँजीवाद में ही वर्ग संघर्ष अपने चरम सीमा पर क्यों पहुँचा?
  97. प्रश्न- मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  98. प्रश्न- 'कार्ल मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  100. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक युगों के विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  102. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिये।
  103. प्रश्न- समाजशास्त्र को मार्क्स का क्या योगदान मिला?
  104. प्रश्न- मार्क्स ने समाजवाद को क्या योगदान दिया?
  105. प्रश्न- साम्यवादी समाज के निर्माण के लिये मार्क्स ने क्या कार्य पद्धति सुझाई?
  106. प्रश्न- मार्क्स ने सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या किस तरह से की?
  107. प्रश्न- मार्क्स की सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या में प्रमुख कमियाँ क्या रहीं?
  108. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में मार्क्स के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  109. प्रश्न- कार्ल मार्क्स का संक्षिप्त जीवन-परिचय तथा प्रमुख कृतियों का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  112. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  113. प्रश्न- वर्ग को लेनिन ने किस तरह से परिभाषित किया?
  114. प्रश्न- आदिम साम्यवादी युग में वर्ग और श्रम विभाजन का कौन सा स्वरूप पाया जाता था?
  115. प्रश्न- दासत्व युग में वर्ग व्यवस्था की व्याख्या कीजिए।
  116. प्रश्न- सामंती समाज में वर्ग व्यवस्था का कौन-सा स्वरूप पाया जाता था?
  117. प्रश्न- फ्रांस की क्रान्ति के महत्व एवं परिणामों की विवेचना कीजिए।
  118. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के इतिहास दर्शन का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  119. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के अनुसार वर्ग की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  120. प्रश्न- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत वर्ग संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।
  121. प्रश्न- समाजशास्त्र के संघर्ष सम्प्रदाय में मार्क्स और डेहरनडार्फ की तुलना कीजिए।
  122. प्रश्न- मार्क्स के विचारों का मूल्यांकन कीजिए।
  123. प्रश्न- "हीगल ने 'आत्म-चेतना' के अलगाव की चर्चा की है जबकि मार्क्स ने श्रम के अलगाव की।" स्पष्ट कीजिए।
  124. प्रश्न- मार्क्स के राज्य सम्बन्धी विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  125. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद के आवश्यक लक्षणों की आलोचनात्मक परीक्षा कीजिए।
  126. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  127. प्रश्न- सर्वहारा क्रान्ति की विशेषताएँ बताइये।
  128. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाववाद के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
  129. प्रश्न- मार्क्स का आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त बताइये। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता बताइए।
  130. प्रश्न- सत्ता की अवधारणा स्पष्ट कीजिए। सत्ता कितने प्रकार की होती है?
  131. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा वर्णित सत्ता के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
  132. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए।
  133. प्रश्न- वेबर के धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइए।
  134. प्रश्न- आदर्श प्रारूप की धारणा का वर्णन कीजिए।
  135. प्रश्न- मैक्स वेबर के "पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी विचारों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिये।
  136. प्रश्न- वेबर के समाजशास्त्र में योगदान पर एक लेख लिखिये।
  137. प्रश्न- मैक्स वेबर का संक्षिप्त जीवन-परिचय दीजिए।
  138. प्रश्न- मैक्स वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? स्पष्ट करें।
  139. प्रश्न- मैक्स वेबर की प्रमुख रचनाएँ बताइए।
  140. प्रश्न- मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
  141. प्रश्न- वेबर का धर्म का सिद्धान्त क्या है?
  142. प्रश्न- मैक्स वेबर के आदर्श प्रारूप पर टिप्पणी लिखिए।
  143. प्रश्न- प्रोटेस्टेण्ट आचार क्या है? व्याख्या कीजिए।
  144. प्रश्न- मैक्स वेबर के सामाजिक क्रिया सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  145. प्रश्न- सामाजिक विचार के सन्दर्भ में मैक्स वेबर के योगदान का परीक्षण कीजिए।
  146. प्रश्न- शक्ति की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  147. प्रश्न- दुर्खीम एवं वेबर के धर्म के सिद्धान्त की तुलना आप किस तरह करेंगें?
  148. प्रश्न- सामाजिक विज्ञान की पद्धति के निर्माण में मैक्स वेबर के योगदान का वर्णन कीजिए।
  149. प्रश्न- वेबर द्वारा प्रस्तुत 'सामाजिक क्रिया' के वर्गीकरण का परीक्षण कीजिए।
  150. प्रश्न- अन्तः क्रिया का क्या अर्थ है? अन्तःक्रिया के प्रकारों का उल्लेख करिये।
  151. प्रश्न- प्रतीकात्मक अन्तः क्रियावाद क्या है? प्रतीकात्मक अन्तर्क्रियावादी सिद्धान्त की मान्यताएँ समझाइये।
  152. प्रश्न- जार्ज हरबर्ट मीड का प्रतीकात्मक अन्तः क्रियावाद बतलाइये।
  153. प्रश्न- मीड का भूमिका ग्रहण का सिद्धान्त समझाइये।
  154. प्रश्न- प्रतीकात्मक का क्या अर्थ है?
  155. प्रश्न- प्रतीकात्मकवाद की विशेषताएँ बताइये।
  156. प्रश्न- प्रतीकों के भेद या प्रकार बताइये।
  157. प्रश्न- सामाजिक जीवन में प्रतीकों का क्या महत्व है?
  158. प्रश्न- टालकॉट पारसन्स का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  159. प्रश्न- टालकाट पारसन्स का "सामाजिक क्रिया" का सिद्धान्त प्रस्तुत कीजिये।
  160. प्रश्न- टालकॉट पारसन्स का सामाजिक व्यवस्था सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  161. प्रश्न- आर. के. मर्टन का संक्षिप्त जीवन परिचय व रचनाएँ लिखिए।
  162. प्रश्न- आर. के. मर्टन की आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  163. प्रश्न- आर. के. मर्टन की बौद्धिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  164. प्रश्न- मध्य-अभिसीमा सिद्धान्त का अर्थ व प्रकृति को समझाइये।
  165. प्रश्न- आर. के. मर्टन का "प्रकट एवं अव्यक्त कार्य सिद्धान्त को समझाइये।
  166. प्रश्न- टॉलकाट पारसन्स के पैटर्न वैरियबल की चर्चा कीजिये।

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